तिरंगे में लिपटने की तमन्ना थी,
कुर्बान होना चाहता था इस वतन पे,
पर क्या कोई भी कुर्बानी याद रहती है,
पूछो देश चलाने वालों से,
भगत सिंह भी गए, गाँधी भी चले गए,
पर क्या अपनी परछाई भी छोड़ पाए कहीं,
देश के ठेकेदारों ने सौदा कर दिया हमारा भी,
पर जितनी नफरत मुझे इन ठेकेदारों से है,
उतनी ही मोहब्बत है अपने देश से भी,
एक दिन फिर बदलाव की आंधी आएगी,
मुझ-सा ही कोई भगत सिंह और गाँधी वापिस आएगा,
हो कुर्बान इस देश पे फिर से हजारों चिराग जलाएगा,
कुछ साल के लिए ही सही पर दिलों को झकझोर के रख जाएगा,
आज भी तिरंगे में लिपटने की तमन्ना है,
आज भी कुर्बान होना है हमें इस वतन पे...
कुर्बान होना चाहता था इस वतन पे,
पर क्या कोई भी कुर्बानी याद रहती है,
पूछो देश चलाने वालों से,
भगत सिंह भी गए, गाँधी भी चले गए,
पर क्या अपनी परछाई भी छोड़ पाए कहीं,
देश के ठेकेदारों ने सौदा कर दिया हमारा भी,
पर जितनी नफरत मुझे इन ठेकेदारों से है,
उतनी ही मोहब्बत है अपने देश से भी,
एक दिन फिर बदलाव की आंधी आएगी,
मुझ-सा ही कोई भगत सिंह और गाँधी वापिस आएगा,
हो कुर्बान इस देश पे फिर से हजारों चिराग जलाएगा,
कुछ साल के लिए ही सही पर दिलों को झकझोर के रख जाएगा,
आज भी तिरंगे में लिपटने की तमन्ना है,
आज भी कुर्बान होना है हमें इस वतन पे...