Wednesday, 10 August 2011

तुम

आँखें खोलूं तो पाऊं तुम को
बंद कर लूं तो भी तुम हो
सोना चाहूं तो सपने में तुम हो
जागूं तो हर पल में तुम हो
सोच रहा हूँ क्यों हो ऐसी
मेरे तो पल-पल में तुम हो
लगने लगा क्यूँ तुम्हे मैं पराया
मेरी तो हर धड़कन में तुम हो

जीवन से रहा नहीं मोह तुम बिन
फिर भी मेरी हर सांस में तुम हो
हंसी से नाता है छूटा
आंसू कि हर आस में तुम हो
ना जी पा रहा हूँ तुम बिन
मरने के अहसास में तुम हो
समझ ना पा रही हो तुम मुझको
मेरी तो हर आस में तुम हो

सूरज की हर किरण है कहती
मेरे तो विश्वास में तुम हो
हवा के ठंडे झोंके से पूछा
कहता जीवन का सार ही तुम हो
फिर क्यों हो खफा हमसे इतनी
जब सांसों की डोर में तुम हो
ना सोऊं ना मैं जागूं
इस बेचैनी का आधार तो तुम हो

जहां भी देखूं तुमको पाऊं
मेरे मन का प्यार तो तुम हो
इतना बुरा हूँ, मैं नहीं जानता
मेरे लिए तो खुदा भी तुम हो
जीवन के हर मोड़ पे देखो
मेरी हर याद में तुम हो
एक बार अपना लो मुझ को
मेरा तो आगाज़ भी तुम हो

अब तो कलम की स्याही भी कहती
मेरे मन के हर विचार में तुम हो
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