Sunday, 30 October 2011

इंद्र-धनुष


जामुन से चुराया जामुनी,
समंदर को छाना तो मिला नीला,
आसमान से लिया आसमानी,
पत्तों ने दिया हरा,
पीला मिला खिली हुई धूप से,
नारंगी दिया चढ़ते हुए सूरज ने,
लाल लिया रगों में दौड़ते लहू से,
और बना एक सतरंगी सपना|
सतरंगी सपना नहीं है ये,
और ना हैं ये सात रंग,
ये तो जुड़े हैं सिर्फ तुमसे,
तुम्हारी परछाई से,
और हैं मेरे जीने का सहारा,
मेरे अस्तित्व का प्रमाण|
तलाश है उसी इंद्र-धनुष की,
जो समेटे हो इन सबको,
अपने आगोश में, और
अवगत कराये तुम्हारे इस प्रारूप से||

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