इक रास्ता जा रहा था उस तरफ,
जहां जाने से भी डरते हैं सब,
पर जाना सबको है एक दिन,
क्योंकि सबकी मंजिल वही तो है,
मैंने डर को थोडा बाहर निकाला,
और बढ़ चला उस रास्ते पे अकेले ही,
कहीं राख अभी भी मानो गरम थी,
तो कहीं समय के साथ ठंडी पड़ गयी थी,
एक सन्नाटा-सा छाया हुआ था चारों ओर,
तभी आवाज़ आने लगी दूर कहीं से,
एक झुरमुट आ रहा था कुछ मानवों का,
रुदन का सा माहौल था जैसे,
सब राम और हरि नाम जप रहे थे,
मन्त्रों का उच्चारण हो रहा था,
चार कंधों पे आ रहा था मेरा ही शरीर,
कुछ अपने थे और कुछ अपने से थे,
जो पाया था, यहीं रह गया आज,
रह गया था बस ये आखिरी पल का साथ,
आज ना कोई ख़ुशी थी, ना कोई ग़म,
बस एक ही सोच थी इस विचलित मन में,
कि अगर समझ पाता इस सत्य को पहले ही,
तो कर पाता इस अनमोल जीवन का सदुपयोग,
कितनी छोटी थी जिंदगी के जी भर जी भी ना सका,
धीरे-धीरे सब शांत-सा पड़ने लगा,
सब बढ़ चले अपने-अपने जीवन पथ पर,
फिर उसी जीवन की आपा-थापी में,
और मैं फिर से अकेला हो गया था,
मेरी राख भी अब ठंडी पड़ने लगी थी,
अंत हो गया था आज इस अध्याय का,
और समय था अगले अध्याय के प्रारम्भ का,
यहाँ रुदन था तो कहीं ख़ुशी की बारी थी,
समय के चक्र पे बढ़ चला फिर एक बार ||
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