Sunday, 18 March 2012

सपने 2

रात ही तो अपनी होती है,
संभल के ये खर्चनी होती है,
सब रात में सपने देखते हैं,
मैं रात में सपने बुनता हूँ ||


वही सपने जो कभी सोते हुए आते थे,
आज मुझे सोने नहीं देते हैं,
ये सपने नहीं हैं, आधार हैं भविष्य का,
प्रतिरूप है सच का, जो अनभिज्ञ है हमसे,


कहते हैं समय के साथ सपने भी बदल जाते हैं,
पर कुछ सपने कभी नहीं बदलते,
क्योंकि उन्हें बदलना होता है यथार्थ में,
जो संभव नहीं बिना खोये अपना अस्तित्व,


या यूँ कहें कि वो ही पूर्णता है इनकी,
जीवन का अटूट सत्य बनने के लिये,
मार्ग प्रशस्त करते हैं यही सपने,
और यही सत्य भविष्य में नए सपनों को जन्म देता है ||

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