Monday, 27 August 2012

हाल-ए-दिल

तुमसे मिला मैं कुछ इस तरह,
कि अपने होने का गुमान होने लगा,
तुम्हें देखा तो देखता रह गया,
कि सपने सच होने का एहसास होने लगा |

 
वो हंसी आज भी उतनी ही खिली थी,
जब पहली बार मुझ से मिली थी,
आँखों में भी वही आरज़ू थी,
होंठों पे आके बात आज फिर रुकी थी,

तू भी वही, मैं भी वही,
मुझे आज भी तेरा इंतज़ार है यहीं,
ये आँखें आज भी ढूंढ रही हैं,
मेरे उन्हीं सवालों के जवाब कहीं,


इक बार जो हाल-ए-दिल कहा होता,
समां कुछ और ही यहाँ होता,
सांसें थम ही जाती बेशक,
हर पल तो मर-मर के ना कटा होता ||

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