Monday, 4 January 2016

ठूंठ

एक ठूंठ भी यही सोचता है कि पतझड़ के बाद तो बहार आएगी और एक दिन उसकी ज़िंदगी भी हरी-भरी होगी पर उसे ये नहीं पता कि उसके जीवन में तो बहारें संभव ही नहीं हैं और टूट कर बिखरना या गिर के जलना ही उसका भाग्य है...

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