जब-जब भीड़ बढ़ी है,
तू ही याद आई है,
जब भी तन्हा हुआ हूँ,
तू ही याद आई है...
तू ही याद आई है,
जब भी तन्हा हुआ हूँ,
तू ही याद आई है...
तेरी याद को संजोता रहा मैं,
हर सांस में पिरोता रहा मैं,
अपने साये से कुछ इस तरह लड़ा,
के इस भीड़ में भी अब तन्हा मैं...
जिस हवा में तेरी खुशबू नहीं,
उसमें सांस कैसे लेता मैं,
इस तन्हाई का गुमां होता,
तो अब तक जां दे देता मैं...
अब बहुत नींद आ रही है,
मुझे अपनी गोद में तू सुला ले,
दम घुट रहा है मेरा,
आखरी बार तो गले से लगा ले...
मुझे अपनी गोद में तू सुला ले,
दम घुट रहा है मेरा,
आखरी बार तो गले से लगा ले...
ज़िंदगी भी उधार-सी लगती है,
हर सांस कर्ज़दार सी लगती है,
फिर भी मुझे कोई गिला नहीं,
बस तेरे दीदार की चाहत
लगती है...
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