अकेलेपन से घबराता हूँ मैं,
भीड़ से कतराता हूँ मैं,
जिंदगी मानो बोझ हो गयी है,
अपनी तो यही कहानी हर रोज़ हो गयी है...
पास बुलाने से भी अब तो डरते हैं,
दूर रहूँ यही दुआ सब करते हैं,
हंसी तो अब सपनों में भी नहीं आती है,
क्या वक़्त के साथ दुनिया इतनी बदल जाती है...
शायद कसूर इसमें भी मेरा है,
इस रात के बाद तो ना कोई सवेरा है,
रात का अंधेरा भी आँखों में चुभता है,
सूरज बिन चढ़े ही यहां डूबता है...
सांसें भी कुछ ज्य़ादा लगने लगी हैं,
दिल में बेचैनी सी बढ़ने लगी है,
इस जीवन का कोई औचित्य तो बचा नहीं,
पर मुझे तुझ से भी कोई गिला नहीं...
भीड़ से कतराता हूँ मैं,
जिंदगी मानो बोझ हो गयी है,
अपनी तो यही कहानी हर रोज़ हो गयी है...
पास बुलाने से भी अब तो डरते हैं,
दूर रहूँ यही दुआ सब करते हैं,
हंसी तो अब सपनों में भी नहीं आती है,
क्या वक़्त के साथ दुनिया इतनी बदल जाती है...
शायद कसूर इसमें भी मेरा है,
इस रात के बाद तो ना कोई सवेरा है,
रात का अंधेरा भी आँखों में चुभता है,
सूरज बिन चढ़े ही यहां डूबता है...
सांसें भी कुछ ज्य़ादा लगने लगी हैं,
दिल में बेचैनी सी बढ़ने लगी है,
इस जीवन का कोई औचित्य तो बचा नहीं,
पर मुझे तुझ से भी कोई गिला नहीं...
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