जश्न-ए-तन्हाई मैं मनाता कैसे,
इस शाम का लुत्फ़ उठाता कैसे,
आँखें बंद करके तुमको जो याद किया,
तेरी खुशबू ने ये चमन महका-सा दिया…
हर तरफ तेरा ही जादू दिखने लगा था,
चाँद भी बादलों में कहीं छुपने लगा था,
तेरे साथ की तो बात ही सबसे जुदा है,
दिलो-दिमाग में आज भी तेरा ही नाम खुदा है…
तू मुस्काती है तो फूल खिल उठते हैं,
इस हंसी को आज भी नैन तरसते हैं,
एक गुज़ारिश है, थोडा-सा मान रखना,
इन होठों पे हमेशा मुस्कान रखना…
इस शाम का लुत्फ़ उठाता कैसे,
आँखें बंद करके तुमको जो याद किया,
तेरी खुशबू ने ये चमन महका-सा दिया…
हर तरफ तेरा ही जादू दिखने लगा था,
चाँद भी बादलों में कहीं छुपने लगा था,
तेरे साथ की तो बात ही सबसे जुदा है,
दिलो-दिमाग में आज भी तेरा ही नाम खुदा है…
तू मुस्काती है तो फूल खिल उठते हैं,
इस हंसी को आज भी नैन तरसते हैं,
एक गुज़ारिश है, थोडा-सा मान रखना,
इन होठों पे हमेशा मुस्कान रखना…
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