Tuesday, 18 September 2012

जश्न-ए-तन्हाई

जश्न-ए-तन्हाई मैं मनाता कैसे,
इस शाम का लुत्फ़ उठाता कैसे,

आँखें बंद करके तुमको जो याद किया,
तेरी खुशबू ने ये चमन महका-सा दिया…

 
हर तरफ तेरा ही जादू दिखने लगा था,
चाँद भी बादलों में कहीं छुपने लगा था,

तेरे साथ की तो बात ही सबसे जुदा है,
दिलो-दिमाग में आज भी तेरा ही नाम खुदा है…

 
तू मुस्काती है तो फूल खिल उठते हैं,
इस हंसी को आज भी नैन तरसते हैं,

एक गुज़ारिश है, थोडा-सा मान रखना,
इन होठों पे हमेशा मुस्कान रखना…

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