तन्हाई की तलाश में पहुँचा अपने मूल तक,
पाया वहां यादों का अथाह समंदर,
हर दीवार, हर कोना, हर पत्ता,
मानो कुछ कहना चाह रहा है,
कुछ पूछना चाह रहा है,
पर मूक हैं मेरी तरह वो भी,
सवाल उनके भी हैं और मेरे भी,
हलक में अटक गए हैं जैसे,
ये उन्हें भी मालूम है और मुझे भी,
के कुछ सवाल तो होते हैं
पर उनके जवाब नहीं होते,
इसी लम्हे से दूर भाग रहा था मैं...
पर कहते हैं ना...
जिससे जितना दूर भागो वो लौट के आ ही जाता है,
जिसे जितना चाहो वो उतना ही दूर चला जाता है |
कुछ तो चाह कर भी लौट नहीं सकते,
और कुछ शायद कभी लौटना ही नहीं चाहते ||
पाया वहां यादों का अथाह समंदर,
हर दीवार, हर कोना, हर पत्ता,
मानो कुछ कहना चाह रहा है,
कुछ पूछना चाह रहा है,
पर मूक हैं मेरी तरह वो भी,
सवाल उनके भी हैं और मेरे भी,
हलक में अटक गए हैं जैसे,
ये उन्हें भी मालूम है और मुझे भी,
के कुछ सवाल तो होते हैं
पर उनके जवाब नहीं होते,
इसी लम्हे से दूर भाग रहा था मैं...
पर कहते हैं ना...
जिससे जितना दूर भागो वो लौट के आ ही जाता है,
जिसे जितना चाहो वो उतना ही दूर चला जाता है |
कुछ तो चाह कर भी लौट नहीं सकते,
और कुछ शायद कभी लौटना ही नहीं चाहते ||