Wednesday, 12 October 2016

Nostalgia

तन्हाई की तलाश में पहुँचा अपने मूल तक,
पाया वहां यादों का अथाह समंदर,
हर दीवार, हर कोना, हर पत्ता,
मानो कुछ कहना चाह रहा है,
कुछ पूछना चाह रहा है,
पर मूक हैं मेरी तरह वो भी,
सवाल उनके भी हैं और मेरे भी,
हलक में अटक गए हैं जैसे,
ये उन्हें भी मालूम है और मुझे भी,
के कुछ सवाल तो होते हैं
पर उनके जवाब नहीं होते,
इसी लम्हे से दूर भाग रहा था मैं...

पर कहते हैं ना...

जिससे जितना दूर भागो वो लौट के आ ही जाता है,
जिसे जितना चाहो वो उतना ही दूर चला जाता है |
कुछ तो चाह कर भी लौट नहीं सकते,
और कुछ शायद कभी लौटना ही नहीं चाहते ||

Friday, 17 June 2016

इंतज़ार

चाहता तो किसी छप्पर के नीचे ही छिप जाता,
पर यहां तो चिथड़े होना ही लिखा था,
सोचा था कि इस बारिश के बाद तो तुम आओगी ही,
मौसम पलटते रहे और मैं यूं ही राह तकता रहा,
बहारें क्या अब तो पतझड़ भी हंसती है मुझ पे,
कभी मयखाने का, तो कभी जहन्नुम का रास्ता बताते हैं अब तो...

Monday, 4 January 2016

ठूंठ

एक ठूंठ भी यही सोचता है कि पतझड़ के बाद तो बहार आएगी और एक दिन उसकी ज़िंदगी भी हरी-भरी होगी पर उसे ये नहीं पता कि उसके जीवन में तो बहारें संभव ही नहीं हैं और टूट कर बिखरना या गिर के जलना ही उसका भाग्य है...

Monday, 7 December 2015

नशा

अकेलेपन का भी अजब सा ही नशा है,
ना आगे बढ़ने की होड़, ना कोई जोड़-तोड़,
किसी से कुछ लेना नहीं, किसी का कुछ देना नहीं,
ना किसी से पूछना-पुछाना, ना किसी को कुछ बताना,
बना लिया तो खा लिया या फिर थोड़ा पानी पी लिया,
कुछ ना मिला तो अकेलेपन को ही जी लिया,
कोई बात भी करे तो शोर सा महसूस होता है,
रात हो या दिन, कुछ और सा महसूस होता है,
एक सुनसान सा कोना ही अपना सा लगता है,
इस अकेलेपन में जहां ख्वाब कहीं जलता है,
कोई कितना भी बाह्यमुखी बन ले,
मन से तो हैं हम सब अकेले ही,
दुनिया की इस भीड़ में खुद को तलाश रहे हैं,
जहां वक़्त ही वक़्त है, उस अकेलेपन से भाग रहे हैं,
इस अकेलेपन से दोस्ती करने से क्यूं डर लगता है,
किसी को पराया तो किसी को ये घर लगता है,
आये भी अकेले ही थे और जाना भी है अकेले,
इसी रोशनी में रह जाएंगे दुनिया तेरे ये मेले ||

Saturday, 14 November 2015

गुस्ताखी

एक हसीं गुस्ताखी हो गई जो तुमसे प्यार कर बैठा,
गुनाह तो तब हुआ जब इकरार कर बैठा,
रंज है तो इतना कि सज़ा-ए-मौत दी होती,
नज़र-बंद करके यूं जीना ना मुहाल किया होता,
ना तुम्हे कोई मलाल रहता

और ना इस ना-चीज़ का नामोनिशां रहता ||

Friday, 13 November 2015

दीदार

अजीब संयोग है ना, जिन्हे ये शक्ल देखना भी ग़वारा ना था,
आज अंतिम दर्शन की कतार में सबसे आगे खड़े हैं,
अगर पता होता कि इस मौके पे उनका दीदार नसीब होगा,
तो कमबख्त साँसों को उनके इंतज़ार में ना रोका होता ||

Thursday, 22 October 2015

अश्क़

किसी के अश्क़ मोती होते हैं,
और किसी के गन्दा पानी,
कसूर अश्कों का नहीं है,
कद्रदान की नज़र का फेर है...