Wednesday, 2 November 2011

पंचतत्व

पंचतत्व से बना सब पंचतत्व में लीन होने को,
कहीं कुछ ज्यादा तो कुछ मिला कम,
और हो गया एक नए मानव का जन्म|

रंग भी होते तीन हैं - लाल, हरा, नीला,
मिल के बन जाते अनेक हैं,
लाल बढ़ा तो रगों का खून बन गया,
हरा प्रकृति ने अपने लिए रख लिया,
नीला आसमान को भाया,
बाकी सबको मिलाकर हर पल नया दृश्य बन आया|

यूँ ही बना मानव भी,
कहीं अग्नि ने तो कहीं शीतलता ने अपना प्रभाव दिखाया,
वायु वेग सा बढ़ता हुआ आगे,
आकाश तक पहुँचने की चाह लिए,
मिल गया उसी मिट्टी में, जहाँ से उठा तो वो,
पंचतत्व से बना पंचतत्व में ही लीन हो गया||

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