एक मोहल्ला था अपना,
जहाँ था बीता बचपन अपना,
मिलता था बस अपनापन,
कटता था सुखद जीवन,
इंट-मिटटी से घर थे बने,
छतों की तरह दिल थे जुड़े,
इंटों की सड़क पे साइकिल चलाना,
सीखते-सीखते गिर पड़ना,
मिटटी से जख्मों को ढकना,
अमरुद के पेड़ से कच्चे अमरुद खाना,
अनार चुराना, दोपहरी में बेर खाना,
कंचे खेलना, फिर उन्हें छुपाना,
पडोसी के शीशे तोडना,
आंटी का शिकायत लेके घर आना,
मम्मी का सबकी क्लास लगाना,
सारा-सारा दिन घर ना आना,
छोटे-छोटे बहाने बनाना,
पढने बैठते ही नींद आ जाना,
छुट्टियों का बेसब्री से इंतज़ार करना,
छुट्टियों के काम को स्कूल में ही ख़त्म करना,
कहीं जाने से पहले सबको बताना,
नये कपडे-खिलौने सबको दिखाना,
छोटी-छोटी खुशियों को समेटना,
ऐसा था हमारा बचपन,
कहाँ गया वो सुनहरा बचपन,
कहते हैं हम बड़े हो गये हैं,
लगता है जैसे सिमट गये हैं,
बड़ी खुशियाँ भी छोटी लगती हैं,
हर बात में कोई गोटी लगती है,
जिंदगी में सहजता नदारद है,
जिसके पीछे दौड़ रहे हैं,
क्या वही जीने का मकसद है||
जहाँ था बीता बचपन अपना,
मिलता था बस अपनापन,
कटता था सुखद जीवन,
इंट-मिटटी से घर थे बने,
छतों की तरह दिल थे जुड़े,
इंटों की सड़क पे साइकिल चलाना,
सीखते-सीखते गिर पड़ना,
मिटटी से जख्मों को ढकना,
अमरुद के पेड़ से कच्चे अमरुद खाना,
अनार चुराना, दोपहरी में बेर खाना,
कंचे खेलना, फिर उन्हें छुपाना,
पडोसी के शीशे तोडना,
आंटी का शिकायत लेके घर आना,
मम्मी का सबकी क्लास लगाना,
सारा-सारा दिन घर ना आना,
छोटे-छोटे बहाने बनाना,
पढने बैठते ही नींद आ जाना,
छुट्टियों का बेसब्री से इंतज़ार करना,
छुट्टियों के काम को स्कूल में ही ख़त्म करना,
कहीं जाने से पहले सबको बताना,
नये कपडे-खिलौने सबको दिखाना,
छोटी-छोटी खुशियों को समेटना,
ऐसा था हमारा बचपन,
कहाँ गया वो सुनहरा बचपन,
कहते हैं हम बड़े हो गये हैं,
लगता है जैसे सिमट गये हैं,
बड़ी खुशियाँ भी छोटी लगती हैं,
हर बात में कोई गोटी लगती है,
जिंदगी में सहजता नदारद है,
जिसके पीछे दौड़ रहे हैं,
क्या वही जीने का मकसद है||
No comments:
Post a Comment