सर्दी की सुबह है,
कोहरा छंटने लगा है,
धूप खिलने लगी है,
हवा में ठंडक है,
फूलों में रंगत है,
चाय की गरम प्याली है,
किताबें बिखरी पड़ी हैं,
हम बहाने से छत पर पहुंचे,
वो कभी बाल सुखाने,
तो कभी कपड़े सुखाने,
इक झलक दिखाया करती है,
हम कागज़ के पन्नों पे,
पता नहीं क्या-क्या लिखते हैं,
हाल-ए-दिल को शब्दों में संजोते हैं,
जब शब्द कम पड़ जाते हैं तो,
किताबों के पन्ने पलटते हैं,
कुछ समझने का प्रयत्न करते हैं,
समय बढ़ता रहता है,
दिन ढलता रहता है,
और फिर इंतज़ार होता है,
कल की सुबह का|
कोहरा छंटने लगा है,
धूप खिलने लगी है,
हवा में ठंडक है,
फूलों में रंगत है,
चाय की गरम प्याली है,
किताबें बिखरी पड़ी हैं,
हम बहाने से छत पर पहुंचे,
वो कभी बाल सुखाने,
तो कभी कपड़े सुखाने,
इक झलक दिखाया करती है,
हम कागज़ के पन्नों पे,
पता नहीं क्या-क्या लिखते हैं,
हाल-ए-दिल को शब्दों में संजोते हैं,
जब शब्द कम पड़ जाते हैं तो,
किताबों के पन्ने पलटते हैं,
कुछ समझने का प्रयत्न करते हैं,
समय बढ़ता रहता है,
दिन ढलता रहता है,
और फिर इंतज़ार होता है,
कल की सुबह का|
No comments:
Post a Comment