मैं माँ हूँ,
तेरे जीवन का आधार हूँ,
उंगली पकड़ के चलना सिखाया,
तुतला-तुतला के बोलना सिखाया,
तेरी जरूरतें मेरी बनती गयी,
और मेरी जरूरतें विलुप्त होती गयी,
तेरी ख़ुशी में ही अपनी ख़ुशी को पाया,
मेरा तो संसार भी तुझ में ही समाया||
तेरी गलतियों को भी सबसे छुपाया,
छोटी-छोटी गलतियों को नज़र-अंदाज़ किया,
बड़ी-बड़ी पे कभी डांट तो कभी प्यार से समझाया,
ज्यादा परेशान हुई तो जड़ दिए दो हाथ भी,
पर अगले ही पल तुझ पे अपना प्यार बरसाया,
कभी घर से तो कभी समाज से तुझे बचाया,
दिल और दिमाग की बहस भी हुई,
पर माँ के दिल के आगे दिमाग की हार ही हुई||
समय-चक्र चला, परिवर्तन आया,
अगले ही पल मैंने खुद को असहाय पाया,
मैं वहीं थी और तू आगे बढ़ गया था,
कुछ ही पल में परिदृश्य ही बदल गया था,
अब तुझे मेरी नहीं, मुझे तेरी दरकार थी,
सूरज चढ़ रहा था तो कहीं शाम ढल रही थी,
कभी-कभी तो मुझे अपना होना भी खलता है,
क्या समय के साथ जीवन का हर दृश्य बदलता है||
अब तो एकमात्र मौन इच्छा बची है,
जिस तरह साथ रही तुम्हारे प्रथम पग से,
तुम साथ रहो मेरे अंतिम पग तक ||
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