Tuesday, 23 October 2012

महफ़िल

जश्न मौत का मेरी मनाओ यारों,
अश्क मय्यत पे ना मेरी बहाओ यारों,
आज महफ़िल आखरी है यारों के साथ,
इस मौके पे जाम हमें भी पिलाओ यारों…

मौत

मौत भी आई तो दुश्मनी कर बैठी,

ना जानती थी के हम सबसे अजीज़ होते,

एक बार हाथ बढ़ा के साथ तो ले जाती,

हम तो जन्मों तक उसके मुरीद होते…

Thursday, 20 September 2012

जिंदगी

हर एक पल जियो कुछ ऐसे,
के तुम्हें भी ये सोचना पड़े,
के जो बीत गया, वो अच्छा था,
या जो जी रहे हैं, वो अच्छा है,
ये जिंदगी है बहुत छोटी, ए दोस्त...
इसे जी लो आज जी भर के…

Tuesday, 18 September 2012

Inspiration

 
Everyone loves competition,

And they want to win it…

I would like to lose…

Coz I want my inspiration to win…




जश्न-ए-तन्हाई

जश्न-ए-तन्हाई मैं मनाता कैसे,
इस शाम का लुत्फ़ उठाता कैसे,

आँखें बंद करके तुमको जो याद किया,
तेरी खुशबू ने ये चमन महका-सा दिया…

 
हर तरफ तेरा ही जादू दिखने लगा था,
चाँद भी बादलों में कहीं छुपने लगा था,

तेरे साथ की तो बात ही सबसे जुदा है,
दिलो-दिमाग में आज भी तेरा ही नाम खुदा है…

 
तू मुस्काती है तो फूल खिल उठते हैं,
इस हंसी को आज भी नैन तरसते हैं,

एक गुज़ारिश है, थोडा-सा मान रखना,
इन होठों पे हमेशा मुस्कान रखना…

Sunday, 16 September 2012

याद 3

जब-जब भीड़ बढ़ी है,
तू ही याद आई है,
जब भी तन्हा हुआ हूँ,
तू ही याद आई है...
 
तेरी याद को संजोता रहा मैं,
हर सांस में पिरोता रहा मैं,
अपने साये से कुछ इस तरह लड़ा,
के इस भीड़ में भी अब तन्हा मैं...
 
जिस हवा में तेरी खुशबू नहीं,
उसमें सांस कैसे लेता मैं,
इस तन्हाई का गुमां होता,
तो अब तक जां दे देता मैं...
 
अब बहुत नींद आ रही है,
मुझे अपनी गोद में तू सुला ले,
दम घुट रहा है मेरा,
आखरी बार तो गले से लगा ले...
 
ज़िंदगी भी उधार-सी लगती है,
हर सांस कर्ज़दार सी लगती है,
फिर भी मुझे कोई गिला नहीं,
बस तेरे दीदार की चाहत लगती है...

Friday, 14 September 2012

वक़्त

अकेलेपन से घबराता हूँ मैं,
भीड़ से कतराता हूँ मैं,
जिंदगी मानो बोझ हो गयी है,
अपनी तो यही कहानी हर रोज़ हो गयी है...


पास बुलाने से भी अब तो डरते हैं,
दूर रहूँ यही दुआ सब करते हैं,
हंसी तो अब सपनों में भी नहीं आती है,
क्या वक़्त के साथ दुनिया इतनी बदल जाती है...


शायद कसूर इसमें भी मेरा है,
इस रात के बाद तो ना कोई सवेरा है,
रात का अंधेरा भी आँखों में चुभता है,
सूरज बिन चढ़े ही यहां डूबता है...


सांसें भी कुछ ज्य़ादा लगने लगी हैं,
दिल में बेचैनी सी बढ़ने लगी है,
इस जीवन का कोई औचित्य तो बचा नहीं,
पर मुझे तुझ से भी कोई गिला नहीं...

अश्क़

तेरे अश्क़ छलकें ना जनाज़े पे मेरे,
दिल दुखे ना तेरा मेरी वजह से कभी,
इसी डर के चलते सांसें लिए जा रहे हैं,
हम तेरी याद में ये ज़िंदगी जिये जा रहे हैं...

मैं ऐसा क्यूँ हूँ...

सब बढ़ चले अपने रस्ते,
फिर भी मैं खड़ा वहीँ हूँ,
ये तो मैं खुद भी नहीं जानता
के मैं ऐसा क्यूँ हूँ...


सब अपने ही रंग में रंग रहे,
अपनी-सी धुन में बढ़ रहे,
क्या मैं पीछे रह गया हूँ,
या फिर बे-रंग हो गया हूँ,
ये तो मैं खुद भी नहीं जानता
के मैं ऐसा क्यूँ हूँ...


जो आज आगे दिख रहा है,
कल वो पीछे रह जाएगा,
इस मंज़िल को पाने के बाद,
इसका मोल भी तो कम हो जाएगा,
मैं तो आज भी पीछे मुड़ के देख रहा हूँ,
जो नहीं मिला उसे ढूँढ रहा हूँ,
ये तो मैं खुद भी नहीं जानता
के मैं ऐसा क्यूँ हूँ...


भीड़ से डर लगता है क्यूँ,
अकेले में दिल धड़कता है यूँ,
अब तो बस अकेले ही चलना चाहता हूँ,
कुछ यादों में ही सिमटना चाहता हूँ,
ये तो मैं खुद भी नहीं जानता
के मैं ऐसा क्यूँ हूँ...


यहाँ तो मुझ-सा भी कोई नहीं,
या मैं ही सबसे अलग हूँ,
ये तो मैं खुद भी नहीं जानता
के मैं ऐसा क्यूँ हूँ...

Monday, 27 August 2012

हाल-ए-दिल

तुमसे मिला मैं कुछ इस तरह,
कि अपने होने का गुमान होने लगा,
तुम्हें देखा तो देखता रह गया,
कि सपने सच होने का एहसास होने लगा |

 
वो हंसी आज भी उतनी ही खिली थी,
जब पहली बार मुझ से मिली थी,
आँखों में भी वही आरज़ू थी,
होंठों पे आके बात आज फिर रुकी थी,

तू भी वही, मैं भी वही,
मुझे आज भी तेरा इंतज़ार है यहीं,
ये आँखें आज भी ढूंढ रही हैं,
मेरे उन्हीं सवालों के जवाब कहीं,


इक बार जो हाल-ए-दिल कहा होता,
समां कुछ और ही यहाँ होता,
सांसें थम ही जाती बेशक,
हर पल तो मर-मर के ना कटा होता ||

उडारी

उड़ता रहे इसी जोश से तू,
इस डाल तो कभी उस डाल,
ये दुआ है दोस्तों की,
और ना रहे कोई तमन्ना बाकी,


गिनते-गिनते जाम खत्म हो जाए,
इतना पीना है तुझे साकी,
ठहरना नहीं है मेरे दोस्त,
अभी तो एक और लंबी उड़ान है बाकी…

Monday, 13 August 2012

मेरा अक्स

मेरा अक्स मुझ से मेरी पहचान कराये,
मुझ में ये है, इस में मैं हूँ,
फिर भी ये क्यूँ अनजान रिश्ते बनवाये,
मेरा अक्स मुझ से मेरी पहचान कराये...

इक अनजानी-सी परछाई से ये जुड्वाता है,
इसमें फिर भी मेरा ही सब नज़र आता है,
दूर जाना चाहूँ तो अपने पास ले आये,
मेरा अक्स मुझ से मेरी पहचान कराये...

कहीं मैं छोटा, तो कहीं मैं बड़ा,
कहीं मैं मन ही मन खुद से लड़ा,
इन सब भावों को ये शून्य बनाये,
मेरा अक्स मुझ से मेरी पहचान कराये...

सुख आये तो सब गले लगायें,
दुःख आये तो पास भी ना आयें,
हर क्षण ये ही मेरा साथ निभाये,
मेरा अक्स मुझ से मेरी पहचान कराये...

मैं कौन हूँ, क्या हूँ, नहीं जानता,
दिल दिमाग की और दिमाग दिल की नहीं मानता,
आत्म-मंथन के द्वंद्व से ये मुक्ति दिलाये,
मेरा अक्स मुझ से मेरी पहचान कराये...

Tuesday, 31 July 2012

Yaaddaan Teriyaan

Yaaddaan Teriyaan
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Jaddon kahaar tera dola chukk ke le jaa re si,
Peechhe chaar kandhe mainu v laike aare si,
Tu peeche mud ke v naa vekhya ek vaari,
Mere bull ajj v tainu hi waajaan laa re si...

Tun chhad ke chaali aa ghar-baar,
Main chhad ke challa aan sansaar,
Tere ghar de tainu yaad karde hone,
Mere ghar v ajj mainu ro re hone… 

Tu jaake ik navaan ghar basaayeingi,
Main v ik nave ghar da deep jagawaanga,
Teri yaad bahut hi mainu sataavegi,
Mainu pata hai, tu v mainu bhul ni paavegi…

Mainu ajj v yaad hain oh saare pal,
Jo tere naal ik-ik karke gujaare c,
Tere bullaan te hansi vekhann lai,
Appan kai vaari bane vechaare c… 

Ik benti hai, Jadon v mainu tu yaad karin,
Hasde-muskuraande hoye yaad karin,
Tere anjuaan to ajj v main unna hi darda haan,
Tainu ajj v unna hi pyaar main karda haan…

Sunday, 24 June 2012

मैं रोना तो बहुत चाहता हूँ मगर

मैं रोना तो बहुत चाहता हूँ मगर
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मैं रोना तो बहुत चाहता हूँ मगर,
खुश्क हो गई आँखें आज फिर मेरी...
पहली दफा किसी के जाने पे इतना बरसी थी,
कि खुश्क हो गई थी आँखें उस रोज़ मेरी...

ना रोक पाया था सामने से जाते उन्हें,
हाथ भी जैसे जड़-सा हो गया था मेरा,
जुबां सूख के जम गई थी मानो,
शिथिल अंग-अंग पड़ गया था मेरा,
एक अनाम ही सही पर रिश्ता तो जुड़ गया था उनसे,
रात भी वो और सवेरा भी वो ही थे मेरा,
मैं बुलाता रहा पर वो नहीं आये,
रुला दिया मुझको, साथ छोड़ा जो मेरा...

आज फिर से कुछ अटपटा-सा घटा एकायक,
कुछ उम्मीद थी, कुछ होंसला था मेरा,
टूटते, बिखरते दिख रहे हैं सपने,
जो पाना चाहा वो ना रहा मेरा,
ना मिल सकेगा जीवन पर्यन्त,
वो ख़ुशी, वो सुकून, वो ख्वाब मेरा,
सोचता हूँ अब, जो गया सो गया,
समेट लूं आँचल में बाकी जहां मेरा...

मैं रोना तो बहुत चाहता हूँ मगर,
खुश्क हो गया आँखों में बसा ख्वाब मेरा…

Wednesday, 30 May 2012

कुर्बानी

तिरंगे में लिपटने की तमन्ना थी,
कुर्बान होना चाहता था इस वतन पे,
पर क्या कोई भी कुर्बानी याद रहती है
,
पूछो देश चलाने वालों से,
भगत सिंह भी गए, गाँधी भी चले गए,
पर क्या अपनी परछाई भी छोड़ पाए कहीं,
देश के ठेकेदारों ने सौदा कर दिया हमारा भी,
पर जितनी नफरत मुझे इन ठेकेदारों से है,
उतनी ही मोहब्बत है अपने देश से भी
,
एक दिन फिर बदलाव की आंधी आएगी,
मुझ-सा ही कोई भगत सिंह और गाँधी वापिस आएगा,
हो कुर्बान इस देश पे फिर से हजारों चिराग जलाएगा,
कुछ साल के लिए ही सही पर दिलों को झकझोर के रख जाएगा,
आज भी तिरंगे में लिपटने की तमन्ना है,
आज भी कुर्बान होना है हमें इस वतन पे...

Sunday, 18 March 2012

सपने 2

रात ही तो अपनी होती है,
संभल के ये खर्चनी होती है,
सब रात में सपने देखते हैं,
मैं रात में सपने बुनता हूँ ||


वही सपने जो कभी सोते हुए आते थे,
आज मुझे सोने नहीं देते हैं,
ये सपने नहीं हैं, आधार हैं भविष्य का,
प्रतिरूप है सच का, जो अनभिज्ञ है हमसे,


कहते हैं समय के साथ सपने भी बदल जाते हैं,
पर कुछ सपने कभी नहीं बदलते,
क्योंकि उन्हें बदलना होता है यथार्थ में,
जो संभव नहीं बिना खोये अपना अस्तित्व,


या यूँ कहें कि वो ही पूर्णता है इनकी,
जीवन का अटूट सत्य बनने के लिये,
मार्ग प्रशस्त करते हैं यही सपने,
और यही सत्य भविष्य में नए सपनों को जन्म देता है ||

Thursday, 15 March 2012

समय चक्र

इक रास्ता जा रहा था उस तरफ,
जहां जाने से भी डरते हैं सब,
पर जाना सबको है एक दिन,
क्योंकि सबकी मंजिल वही तो है,
मैंने डर को थोडा बाहर निकाला,
और बढ़ चला उस रास्ते पे अकेले ही,
कहीं राख अभी भी मानो गरम थी,
तो कहीं समय के साथ ठंडी पड़ गयी थी,
एक सन्नाटा-सा छाया हुआ था चारों ओर,
तभी आवाज़ आने लगी दूर कहीं से,
एक झुरमुट आ रहा था कुछ मानवों का,
रुदन का सा माहौल था जैसे,
सब राम और हरि नाम जप रहे थे,
मन्त्रों का उच्चारण हो रहा था,
चार कंधों पे आ रहा था मेरा ही शरीर,
कुछ अपने थे और कुछ अपने से थे,
जो पाया था, यहीं रह गया आज,
रह गया था बस ये आखिरी पल का साथ,
आज ना कोई ख़ुशी थी, ना कोई ग़म,
बस एक ही सोच थी इस विचलित मन में,
कि अगर समझ पाता इस सत्य को पहले ही,
तो कर पाता इस अनमोल जीवन का सदुपयोग,
कितनी छोटी थी जिंदगी के जी भर जी भी ना सका,
धीरे-धीरे सब शांत-सा पड़ने लगा,
सब बढ़ चले अपने-अपने जीवन पथ पर,
फिर उसी जीवन की आपा-थापी में,
और मैं फिर से अकेला हो गया था,
मेरी राख भी अब ठंडी पड़ने लगी थी,
अंत हो गया था आज इस अध्याय का,
और समय था अगले अध्याय के प्रारम्भ का,
यहाँ रुदन था तो कहीं ख़ुशी की बारी थी,
समय के चक्र पे बढ़ चला फिर एक बार ||

Monday, 5 March 2012

याद - 2

हवा में उड़ती वो खुशबू,
याद तुम्हारी लाती है,
प्यार का नशा चढ़ा के,
बेसुध आज भी हमें कर जाती है...